परिचय

देश में तेजी से बढ़ते साइबर अपराधों के बीच मुंबई का यह मामला हर नागरिक को सोचने पर मजबूर करता है। एक शिक्षित दंपत्ति के साथ हुई 58 करोड़ की ठगी ने दिखाया कि डिजिटल युग में कोई भी सुरक्षित नहीं है। आइए जानते हैं इस घटना की पूरी कहानी और बचाव के तरीके।

क्या है डिजिटल अरेस्ट का जाल

साइबर अपराधी अब नई तकनीक से लोगों को निशाना बनाते हैं। वे खुद को सरकारी अधिकारी बताकर वीडियो कॉल पर फर्जी कोर्टरूम दिखाते हैं। पीड़ितों को लगातार डराया जाता है कि उनके खाते फ्रीज हो जाएंगे या गिरफ्तारी होगी।

महाराष्ट्र पुलिस के अनुसार, यह गिरोह इतना तकनीकी रूप से सक्षम था कि अनुभवी लोग भी धोखा खा गए।

मुंबई केस की विस्तृत जानकारी

पीड़ित: 72 वर्षीय फार्मा व्यवसायी और उनकी पत्नी (बैंकिंग अनुभवी)
ठगी की अवधि: अगस्त से अक्टूबर 2025 (40 दिन)
कुल नुकसान: 58 करोड़ रुपये
ट्रांजैक्शन: 27 बार अलग-अलग खातों में भेजा गया।

ठगों ने हर दो घंटे में “पूछताछ” का नाटक किया। दंपत्ति को बताया गया कि अगर बात किसी को बताई तो संपत्ति जब्त हो जाएगी।

स्रोत: महाराष्ट्र साइबर पुलिस रिपोर्ट

पुलिस की तेज कार्रवाई और गिरफ्तारियां

महाराष्ट्र पुलिस ने साइबर विशेषज्ञों की मदद से:

सरगना युवराज उर्फ मार्को गुजरात-राजस्थान में सक्रिय था।

स्रोत: एनडीटीवी, टाइम्स ऑफ इंडिया पुलिस रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का गंभीर संज्ञान

भारत की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है। कोर्ट ने कहा:

स्रोत: सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति

कैसे बचें डिजिटल अरेस्ट स्कैम से

निष्कर्ष

यह मामला साबित करता है कि शिक्षा और अनुभव होने के बावजूद साइबर अपराधी किसी को भी निशाना बना सकते हैं। जरूरत है सतर्कता, तकनीकी जानकारी और त्वरित पुलिस सहयोग की।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

प्रश्न 1: डिजिटल अरेस्ट में सबसे ज्यादा खतरा क्या है?
उत्तर: लगातार मानसिक दबाव और फर्जी आधिकारिक दस्तावेज दिखाना सबसे खतरनाक है।

प्रश्न 2: इस गिरोह के कितने मामले दर्ज हैं?
उत्तर: देश के 13 राज्यों में 31 से अधिक शिकायतें दर्ज हुई हैं।

प्रश्न 3: अगर ऐसा कॉल आए तो क्या करें?
उत्तर: तुरंत कॉल काटें, 1930 पर शिकायत करें, और किसी भी जानकारी को साझा न करें।

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